1. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर की तजि डारौं। साठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसारों
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता प्रेम अयनी श्री राधिका नामक कविता से लिया गया है | इस कविता के कवि रसखान जी हैं। रसखान संप्रदायमुक्त कृष्ण भक्त कवि थे | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने दिल की अभिलाषा प्रकट करते हुए कहते हैं कि अगर श्रीकृष्ण की लाठी और कंबल मिल जाए तो मैं तीनों लोक के राज्य का त्याग कर दूँगा। अगर केवल नंद बाबा की गाय चराने को मिल जाए, जिसे कृष्ण चराते थे तो आठों सिध्दियाँ और नौ निधियों के सुख को भी भूला दूँगा।
2. रसखानी कवीं इन आँखिन सौं व्रज के बनबाग तड़ाग निहारों। कोटिक री कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारीं
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता प्रेम अयनी श्री राधिका नामक कविता से लिया गया है | इस कविता के कवि रसखान जी हैं। रसखान संप्रदायमुक्त कृष्ण भक्त कवि थे | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि का कहना है कि जब से मेरी आँखों ने ब्रज के जंगलों, निकुंजों (वन-वाटिका या फुलवारी या उपवन), तालाबों तथा करील (एक प्रकार की काँटेदार झाड़ी), के सघन कुँजों (झाड़ियों, लताओं आदि से घिरा स्थान; वह जगह जहाँ लताएँ छाई हों) को देखा है, तब से यही इच्छा होती है कि ऐसे मनोहर उपवनों की सुन्दरता के सामने करोड़ों महल बहुत नीच प्रतीत होते हैं। अर्थात ऐसे कीमती महल को छोड़कर कृष्ण जहाँ रासलीला करते थे, वहीं निवास करूँ।
3. सबै बिदेसी वस्तु नर, गति रति रीत लखात। भारतीयता कछु न अब भारत म दरसात
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ स्वदेशी नामक कविता पाठ से लिया गया है | इस कविता के कवि प्रेमघन हैं। प्रेमघन भारतेंदु युग के एक महत्वपूर्ण कवि थे | प्रस्तुत कविता ‘स्वदेशी’ प्रेमघन द्वारा लिखित रचनाएँ ‘प्रेमघन सर्वस्व’ से संकलित इन पंक्तियों के माध्यम से कविवर कहना चाहते हैं की आज के समय में सभी हाठ और बाजार विदेशी वस्तुओं से भरे पड़े हैं। लोगों के रहन-सहन और चाल-ढाल भी एकदम विदेशी जैसे हो गए हैं । कवि को भारत में अब कुछ भी भारतीय दिखाई नहीं पर रहा है
4. भारतमाता ग्रामवासिनी खेतों में फैला है श्यामल धूल-भरा मैला-सा आँचल गंगा-यमुना में आँसू-जल मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता भारतमाता नामक कविता से लिया गया है | इस कविता के कवि सुमित्रानन्द पन्त जी हैं | पन्तजी प्रकृति और सौन्दर्य के प्रेमी कवि थे। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि भारतीय ग्रामीणों की दुर्दशा का चित्र प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि भारत की आत्मा गाँवों में निवास करती है। जहाँ खेत सदा हरे-भरे रहते हैं किंतु यहाँ के निवासी शोषण की चक्की में पिसकर मजबूर दिखाई देते हैं। गंगा-यमुना के जल उनकी आसूं के प्रतिक हैं। भारत माता केवल मिट्टी की एक प्रतिमा बनकर रह गई है।
5. स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित, क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित, राहु ग्रसित शरदेन्दु हासिनी।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ भारतमाता नामक कविता से लिया गया है। इस कविता के कवि सुमित्रानन्द पन्त जी हैं ।पन्तजी प्रकृति और सौन्दर्य के प्रेमी कवि थे | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि पंत जी कहना चाहते है कीभारतीय किसानों द्वारा उपजाए हुए सोने जैसे फसल को अंग्रेजों के द्वारा पैरों से कुचला जा रहा है। किसान धरती माता की तरह शहानशील बनकर चुपचाप देख रहे हैं। वे भीतर ही भीतर रो रहे हैं, कांप रहे हैं और मौन हैं। चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। भारतमाता के मुख की तुलना कवि ने उस चन्द्रमा से की है जिसपर राहू का ग्रहण लगा हो ।
6. एक दिन सहसा सुरज निकला अरे क्षितिज पर नहीं, नगर के चौकः
उत्तर-धूप बरसी पर अंतरिक्ष से नहीं, फटी मिट्टी से प्रस्तुत पंक्तियाँ हिरोशिमा नामक कविता से लिया गया है। इस कविता के कवि अज्ञेय हैं। अज्ञेय जी हिंदी आधुनिक साहित्य में प्रयोगवाद के प्रमुख कवि थे। यह कविता आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण करने वाली है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि एक दिन सबेरे प्रकाश दिखाई पड़ा। यह प्रकाश क्षितिज से निकलते सूरज का नहीं, बल्कि शहर के मध्य में अमेरिका द्वारा गिराए गए परमाणु बम का था। लोग गर्मी से जलने लगे। यह धूप की गर्मी नहीं थी। यह गर्मी बम विस्फोट से उत्सर्जित किरणों की थी। गर्मी फटी धरती की थी।
7. हर बरस आविन्यों में कब और कैसा समारोह हुआ करता है?
उत्तर-आविन्यों मध्ययुगीन ईसाई मठ है। यह दक्षिणी फ्रांस में रोन नदी के किनारे अवस्थित है। आविन्यों फ्रांस का एक प्रमुख कलाकेंद्र रहा है। यहाँ गर्मियों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यंत प्रसिद्ध और लोकप्रिय रंग-समारोह प्रतिवर्ष होता है। रोन नदी के दूसरी ओर एक नई बस्ती है, जहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक किला बनवाया था। बाद में, वहाँ ‘ला शत्रूज’ काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ बना, जिसका धार्मिक उपयोग चौदहवीं शताब्दी से फ्रेंच क्रांति तक होता रहा।
8. नहानघर की नाली क्षणभर के लिए पूरी भर गई, फिर बिलकुल खाली हो गयी। “व्याख्या करें |
उत्तर– प्रस्तुत पंक्ति विनोद कुमार शुक्ल के द्वारा लिखी गई कहानी ‘मछली’ पाठ से लिया गया है। यह कहानी मनोविज्ञान का सहारा लेकर परिवार की कहानी उपस्थित करती है। नहान घर से मछलियों की गंध आ रही है। बालटी खंगाली गयी। फिर बालटी को उलट दिया तो नहानघर की नाली क्षणभर को पूरी भर गई, फिर बिलकुल खाली हो गई। पूरे घर में मछलियों की जैसे गंध आ रही थी। बच्चे मछली पालना चाहते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दीदी सिसकने लगी। बच्चे निराश होने लगे। बच्चों के सपने बिखर गए। घर महकने लगा।
9. बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई, एककलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय पठित पाठ से आधार पर दें।
उत्तर -बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के विश्व विख्यात कलाकार थे। शहनाई और शहनाई वादन उनका जीवन था। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई। शहनाई का तात्पर्य-बिस्मिल्ला खाँ का हाथ हाथ से आशय इतना भर कि बिस्मिल्ला खाँ फूँक और शहनाई की जादुई आवाज का असर हमारे सिर चढ़कर बोलने लगता है। उनके शहनाई की मंगल ध्वनि में सरगम भर उठता है। एक कलाकार के रूप में उन्हें भारतरत्न से लेकर देश के ढेरों विश्वविद्यालयों की मानक उपाधियों से अलंकृत किया गया।
10. ‘मैक्समूलर’ ने नया सिकन्दर किसे कहा है? ऐसा कहना क्या उचित है? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-लेखक ने भारत को समझने, जानने के लिए भारत आनेवाले नवागंतुक, पर्यटकों एवं अधिकारियों को नया सिकंदर कहा है। उसी प्रकार आज भी भारतीयता को निकट से जानने के नवीन स्वप्नदर्शी को आज का सिकंदर कहना अतिशयोक्ति नहीं है, यह उचित है। लेखक का मानना है कि संसार में भारत एक ऐसा देश है जो सर्वविध संपदा प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। भूतल पर स्वर्ग की छटा यहीं देखने को मिलती है। प्लेटो तथा काण्ट जैसे दार्शनिकों ने भी भारत के महत्व को सहर्ष स्वीकार किया है। यूनानी, रोमन तथा सेमेटिक जाति के यहूदियों की विचारधारा में ही सदा अवगाहन करते रहने वाले यूरोपीयनों के विश्वव्यापी एवं सम्पूर्ण मानवता के विकास का ज्ञान भारतीय साहित्य में ही मिला। लेखक के अनुसार, सच्चे भारत के दर्शन गाँवों में ही संभव है न कि कलकत्ता, मुम्बई जैसे शहरों में। यहाँ प्राकृतिक सुषमा और खनिज भंडार हैं। यहाँ कृषि की महत्ता है। यह तपस्वियों की साधना भूमि, जन्मभूमि, कर्मभूमि रही है।
11. लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती?
उत्तर- लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें। उत्तर- लेखक ने रूढ़िवादी विचारधारा और प्राचीन संवेदनाओं से हटकर जीवनयापन करने के प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती। लेखक के कहने का अभिप्राय है कि मरे बच्चे को गोद में दबाये रहनेवाली बंदरियाँ मनुष्य का आदर्श कभी नहीं बन सकती। यानी केवल प्राचीन विचारधारा या रुढ़िवादी विचारधारा विकासवाद के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। मनुष्य को एक बुद्धिजीवी होने के नाते परिस्थिति के अनुसार साधन का प्रयोग करना चाहिए यह सच है कि आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। उपकरण नए हो गए हैं, उलझनों की मात्रा भी बढ़ गई है, परंतु मूल समस्याएँ बहुत अधिक नहीं बदली है। लेकिन पुराने के मोह के बंधन में रहना भी सब समय जरूरी नहीं होता। इसलिए हमें भी नएपन को अपनाना चाहिए। लेकिन इसके साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नये की खोज में हम अपना सर्वस्व न खो दें। क्योंकि कालिदास ने कहा है कि ‘सब पुराने अच्छे नहीं होते और सब नए खराब नहीं होते। अतएव दोनों को जाँचकर जो हितकर हो उसे ही स्वीकार करना
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